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Friday, March 22, 2024

विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (एसटीईएम) क्षेत्रों में महिलाओं का वर्चस्व

 https://pratipakshsamvad.com/women-dominate-the-science-technology-engineering-and-mathematics-stem-areas/ 


(अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस) 


डॉ पल्लवी मिश्रा,

एसोसिएट प्रोफेसर,

एमिटी यूनिवर्सिटी राजस्थान 


बहुत लंबे समय से, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (एसटीईएम) के क्षेत्र में पुरुषों का वर्चस्व रहा है। जबकि परिदृश्य धीरे-धीरे बदल रहा है, इन महत्वपूर्ण क्षेत्रों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व काफी कम था । हालाँकि अब कई सामाजिक और प्रणालीगत चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, एसटीईएम में महिलाएं महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं, नवाचार चला रही हैं और ज्ञान की सीमाओं को आगे बढ़ा रही हैं।

ऐतिहासिक रूप से, महिलाओं को एसटीईएम करियर बनाने से सक्रिय रूप से हतोत्साहित किया गया था। सांस्कृतिक पूर्वाग्रहों और शिक्षा तक सीमित पहुंच ने उनकी प्रगति में और बाधा उत्पन्न की। हालाँकि, पहली कंप्यूटर प्रोग्रामर मानी जाने वाली एडा लवलेस और नोबेल पुरस्कार जीतने वाली पहली महिला मैरी क्यूरी जैसी अग्रणी महिलाओं ने इन मानदंडों को चुनौती दी। उनके अभूतपूर्व कार्य ने आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्ग प्रशस्त किया, जिससे यह प्रदर्शित हुआ कि एसटीईएम क्षेत्रों में महिलाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।


आज, महिलाएं एसटीईएम में महत्वपूर्ण प्रगति कर रही हैं, विभिन्न अभूतपूर्व खोजों और प्रगति में योगदान दे रही हैं। अत्याधुनिक चिकित्सा उपचार विकसित करने वाली अग्रणी अनुसंधान टीमों से लेकर नवीन तकनीकी समाधान बनाने तक, उनकी विशेषज्ञता और दृष्टिकोण भविष्य को आकार दे रहे हैं। डॉ. किज़मेकिया कॉर्बेट, एक वायरोलॉजिस्ट, जिन्होंने कोविड-19 वैक्सीन विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियों के खिलाफ लड़ाई में एक ठोस बदलाव लाने वाली महिला का सिर्फ एक उदाहरण है।


हालाँकि, STEM में महिलाओं के लिए राह बाधाओं से भरी हुई है। लैंगिक रूढ़िवादिता और अंतर्निहित पूर्वाग्रह इन क्षेत्रों में व्याप्त हैं, जिससे "अन्यता" की भावना पैदा हो रही है और उनकी प्रगति में बाधा आ रही है। महिलाएं अक्सर सूक्ष्म आक्रामकता, असमान वेतन और महिला रोल मॉडल की कमी का सामना करने की रिपोर्ट करती हैं, जिससे उनकी भागीदारी हतोत्साहित होती है।


इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए, समावेशी वातावरण को बढ़ावा देना और कम उम्र से लड़कियों के लिए एसटीईएम शिक्षा को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है। महिला रोल मॉडल और परामर्श कार्यक्रम प्रदान करने से युवा लड़कियों को इन क्षेत्रों में खुद को देखने और अंतर्निहित सामाजिक पूर्वाग्रहों को दूर करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, लड़कियों को एसटीईएम गतिविधियों और प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करने से उनकी रुचि बढ़ सकती है और उनके महत्वपूर्ण कौशल विकसित हो सकते हैं। अंततः, एसटीईएम में लिंग अंतर को पाटना केवल इन क्षेत्रों में महिलाओं की संख्या बढ़ाने के बारे में नहीं है; यह मानव प्रतिभा की पूरी क्षमता का दोहन करने के बारे में है। एक समावेशी वातावरण को बढ़ावा देकर और एसटीईएम में महिलाओं को सक्रिय रूप से समर्थन देकर, हम अप्रयुक्त क्षमता का खजाना खोल सकते हैं और एक ऐसा भविष्य बना सकते हैं जहां नवाचार सभी लिंगों की सामूहिक प्रतिभा से प्रेरित हो।

Wednesday, June 23, 2021

Content Marketing Strategies in Online Political Campaigning in India


 https://www.researchgate.net/publication/339927791_Content_Marketing_Strategies_in_Online_Political_Campaigning_in_India

Abstract

Research from all over the world over the past decades show an increasingly positive relationship between the internet and political engagement. Although, the effect may vary from place to place and time to time as it is more evolutionary than revolutionary in nature. Indian political system has also witnessed a deeper transformation in the democratic process as the content marketing strategy is more effective on online platforms. This article uses content analysis of Facebook and Twitter posts to comprehend how the political campaigns influence netizens across a spectrum of online involvement. Content Analysis will study a specific set of data related to Political Campaigns in India that originated and manifested on the Internet during the 2014 and 2019 general elections. The study examines online engagement and specifically, sharing of campaign information on social media platforms.  This paper takes into account the structure of political campaigns within Twitter and Facebook. Findings include a variety of pathways through which digital media influence political engagement and how the choice results from interaction. These data have made it possible to formalize strategic goals of Socio-political engagement on digital media. Consequently, the paper identifies the categories of communication operations that appear on Twitter and Facebook like Tweets, Retweets, Share which involve others in Campaigning Activities.

कोरोना नियंत्रण के लिए आवश्यक: प्रभावी हेल्थ कम्युनिकेशन मॉडल

 भारतीय स्वास्थ्य नीति और स्वास्थ्य संचार ने देश में पनप रहे रोगों के बोझ को कम करने में विशेष भूमिका निभाई है। लेकिन, वैश्विक महामारी कोरोना के कारण संपूर्ण मानवता संकट के दौर से गुजरी रही है। ऐसे में स्वास्थ्य संचार की संज्ञानात्मक और भावनात्मक रूप से भूमिका बढ़ जाती है। बेशक, पिछले कुछ दशकों में स्वास्थ्य संचार सेवाओं ने भारत की स्थिति को सुधारने में योगदान दिया, लेकिन कोरोना ने नई चुनौती पैदा कर दी है। कोरोना के टीके को लेकर फैल रही भ्रांतियों


ने स्पष्ट कर दिया है कि अभी इस महामारी के प्रति हम ना तो सजग हुए हैं ना ही जागरूक। ऐसी स्थिति में कोरोना से बचाव केसंदेशों को गांव -गांव तक पहुंचाने की आवश्यकता है। दरअसल, अभी भी भारत में सेहत को लेकर स्थिति ठीक नहीं है। इसमें सुधार के लिए प्रभावी कदम उठाने होंगे। हालांकि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार स्वास्थ्य नीति में प्रगति के लिए प्रयासरत हैं और इसके लिए विश्व पटल पर सराहना भी मिल रही है, लेकिन इसे अभी पर्याप्त नहीं माना जा सकता। कोविड-19 ने भारत को स्वास्थ्य नीति के पुनरुत्थान का संकेत दिया है।दुनिया के तमाम विकसित देश अपने नागरिकों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने के लिए लगातार नए अनुसंधान कर रहे हैं। उसी तरह भारत में भी स्वास्थ्य संचार की प्रक्रिया जारी है। अखबार, रेडियो, टीवी, नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से साक्षरता दर बढ़ाने की कोशिश की जा रही है। विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत में हेल्थ कम्युनिकेशन की स्वास्थ्य सुधार में अहम भूमिका रही है। उदाहरण केतौर पर पोलियो उन्मूलन की सफलता हासिल करने में हेल्थ कम्युनिकेशन का प्रयास सराहीय रहा है। स्वास्थ्य संचार ने लोगों के जीवन को खासा प्रभावित किया है। इस कोरोना  काल में सरकार अपनी तरफ से स्वास्थ्य संचार को मजबूत बनाने की कोशिश कर रही है। इस डिजिटल युग में मोबाइल संदेशों, आरोग्य सेतु एप, ब्लॉग्स, सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स से लोगों तक स्वस्थ्य संबंधी जानकारी दी जा रही है।ऐसे में स्वास्थ्य बीमा योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना तथा अन्य स्वास्थ्य संबंधी जानकारियों को नागरिकों तक प्रसार करना बहुत ही अहम हो गया है। ताकि, नागरिक सरकार की इन सुविधाओं का लाभ ले सकें। हालांकि आजादी के बाद से मलेरिया, टीबी, कुष्ठ रोग, उच्च मातृ एवं शिशु मृत्यु दर और एचआईवी के बारे में लोगों को जानकारी देने की सरकार की कोशिश सराहनीय रही है, लेकिन ताजे आकड़ों के अनुसार आज भी मातृ एवं शिशु मृत्यु दर एचआईवी, स्वाइन फ्लू और अन्य संक्रामक रोग भारत की स्वास्थ्य प्रणाली पर भारी तनाव बनाए हुए हैं। ऐसे में कोरोना वायरस ने स्थिति को अधिक गंभीर बना दिया है। देश में लगातार चेतावनियों के बावजूद भारत की कोरोना की रैंकिंग में गिरावट आई है या वृद्धि हुई है इसे ताजा हालात से समझा जा सकता है। हाल के आंकड़ों से स्पष्ट हो गया है कि स्वास्थ्य के प्रति हम कितने बेपरवाह हैं। इसलिए देश के ग्रामीण तथा शहरी दोनों ही नागरिकों को स्वस्थ्य जीवन और आवश्यक पोषण के प्रति जानकारी देना जरूरी है। सरकार हेल्थ कम्युनिकेशन के द्वारा समाज को स्वास्थय के प्रति सूचना और ज्ञान उपलब्ध कराने के साथ-साथ सामूहिक रूप से स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने के लिए सचेत कर रही है। स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहने के लिए सही पोषण, साफ पेयजल, आसपास साफ. सफाई रखना तथा अन्य सामाजिक निर्धारकों को भी समझना जरूरी है। बढ़ती जनसंख्या ने साफ कर दिया है कि देश को स्वास्थ्य संचार के जरिए जनसंख्या स्थिरीकरण, लिंग भेद की मानसिकता के प्रति उनकी सोच बदलना बहुत आवश्यक हो गया है।

Tuesday, January 12, 2021

मैं इंसानियत का नाम बन जाऊं



बीते साल जनवरी से दिसम्बर के सफ़र में...

कई फ़लसफ़े, कई मुकाम देखें ...

रोड पर पसरे सन्नाटे थे, मीलों तय कर रहे सफ़र के छालें थे ...

लम्हे बिखरे थे, दर्द और ख़ामोशी के लॉकडाउन में थे ...

बीते साल ने आइना दिखा दिया..

अमीर-गरीब, छोटे-बड़े का फांसला मिटा दिया ...

नए साल में नयी तारिख, नया सवेरा, नयी उम्मीदें हैं ..

पिछले साल से मिले कई ज्ञान हैं ...

और चुनौतियों से भरा अपना आसमान हैं ...

काली रातों के सिरहाने में तकदीर के फ़साने हैं ...

नए संकल्प में, नए इरादे हैं, स्वयं से किये वादे हैं...

डूब रही कश्ती संभालना हैं..

किसी की मुस्कराहट के लिए ज़िन्दगी संवारना हैं ..

किसी के दर्द को बांटना हैं, किसी की ख़ुशी को निखारना हैं  ..

ज़िन्दगी में बचे लम्हों को किसी की ख़ुशी के लिए गुज़ारना हैं ..

किसी के होठों की मुस्कान बन जाऊं...

किसी के अंधेरे में, प्रकाश बन जाऊं...

किसी की हौसलों कि, उड़ान बन जाऊं ..

किसी के मंजिल का रास्ता बन जाऊं...

किसी के ख्व़ाब को मुकम्मल कर जाऊं ..

किसी की मायूसी में, उम्मीद की किरण बन जाऊं...

किसी कि तन्हाई में, महफ़िल सजाऊँ ...

नए साल का यही संकल्प हैं..

मैं इंसानियत का नाम बन जाऊं, स्वयं में मानवता की लौ जलाऊँ ....

 

Friday, January 8, 2021

अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन में भारत को प्रतिनिधितव किया: डॉ. पल्लवी मिश्रा


इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हो रहे अनुसंधान पर केन्द्रित बहु-विषयक अनुसंधान संसथान ने इंस्टीट्यूट फॉर इंजीनियरिंग रिसर्च एंड पब्लिकेशन, ए.पी. सी महालक्ष्मी कॉलेज फॉर विमेन एमआई कॉलेज, मालदीव एवीडी कॉलेज और साइरिक्स कॉलेज, मालदीव के सह-सहियोजन से तीसरे अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन का आयोजन 26-27 दिसंबर, 2020 को मालदीव में हुआ. सम्मलेन में  इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले सभी नवीनतम अवसरों, कोरोना से उत्पन्न चुनौतियों, शैक्षिक क्षेत्र में आये बदलाव, विज्ञान के विकास तथा विभिन्न क्षेत्रों में हो रहे परिवर्तन पर चर्चा हुई. डॉ. इब्राहिम ओ. हमद, गणितीय विश्लेषण में सहायक एसोसिएट प्रोफेसर, गणित विभाग, कॉलेज ऑफ साइंस, सलाहदीन विश्वविद्यालय एरबिल (हवलदार) - कुर्दिस्तान क्षेत्र, इराक ने सम्मलेन में कहा गणित के महत्व को कभी कम नहीं किया जा सकता है. मेरा मानना है कि गणित पूरे ब्रह्मांड की भाषा है. दरअसल, यह अपनी खुद की एक भाषा है. सम्मलेन को संबोधित करते हुए डॉ. एन्ड्रेस पगतपतन, कैंपस एडमिनिस्ट्रेटर, पूर्वी समर राज्य विश्वविद्यालय, (गुईआन कैम्पस) ने कहा कि विचारों के आदान-प्रदान और नवाचारों के प्रसार के लिए ध्वनि प्लेटफार्मों की स्थापना के लिए शोधकर्ताओं, वैज्ञानिकों, नीति निर्माताओं, के बीच सहयोग की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि  मेरा मानना है कि यह लिंचपिन है जो विशेष रूप से विज्ञान और प्रौद्योगिकी के मोर्चे और हमारी दुनिया को सामान्य रूप से आगे बढ़ाएगा. इस अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन में सिंगापुर,  अमेरिका, कनाडा, भारत, श्रीलंका, मलेशिया, इंडोनेशिया, थाईलैंड, वियतनाम, फिलीपींस, यूएई, कतर, सऊदी अरब, ईरान, इराक, रूस के शिक्षकों, छात्र-छात्राओं और शोधकर्ताओं भाग लिया. सम्मलेन में विभिन्न देश के शिक्षकों, छात्र-छात्राओं और शोधकर्ताओं ने अपने रिसर्च पेपर को प्रस्तुत किया. डॉ. पल्लवी मिश्रा, एमिटी स्कूल ऑफ़ कम्युनिकेशन, जयपुर, राजस्थान ने इस अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन में भारत को प्रतिनिधितव किया. डॉ. पल्लवी मिश्रा को उनके "नेटनोग्राफ़िक विश्लेषण: सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से किशोरावस्था में साइबर-मनोविज्ञान को समझना" शीर्षक रिसर्च पेपर के लिए "बेस्ट रिसर्च पेपर" से सम्मानित किया गया. सम्मलेन में उनके शोध प्रयासों की सराहना की गयी. पैनल ने कहा आज साइबर-साइकोलॉजी को समझना अत्यंत आवश्यक है क्यूंकि हम सब अब डिजिटल दुनिया अब हमारी ज़िन्दगी का अहम् हिस्सा बन गयी है.

इस दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन में वर्त्तमान परिवेश की भी चर्चा की भी  गयी, कोरोना से उत्पन्न हुई चुनौतियों को अवसर में बदलने की भी बात की गयी.





Monday, June 1, 2020

जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र में कई अवसर प्रदान करता कोविड -19

संपूर्ण विश्व जहां वैश्विक महामारी कोरोना से पीड़ित है तथा पूर्ण मानव जाति के लिए संकट का समय चल रहा है, वहीं इस महामारी ने दुनिया भर में जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नए अवसर प्रदान किये है. कोविड -19 महामारी ने दुनिया भर के बायोटेक्नोलॉजिस्टों को इस वायरस के समाधान के लिए कई प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया है जो न केवल मानवता को मौजूदा संकट से लड़ने में मदद करेगी बल्कि भविष्य के लिए वायरल रोगों के बारे में हमारे ज्ञान को बढ़ाएगी। कई भारतीय कंपनियां विभिन्न वैज्ञानिकों तरीकों से इस महामारी के समाधानों की दिशा में काम कर रही हैं जो कोविड -19 के खतरे को कम करने में मदद करेंगी, चाहे वह विकासशील परीक्षण हो या बीमारी से बचने के लिए वैक्सीन की खोज हो, जैव प्रौद्योगिकी सेक्टर का विस्तार निश्चित है।

हालांकि जैव प्रौद्योगिकी परीक्षण आज नए आर्टिफीसियल तंत्र बनाने से लेकर टीके विकसित करने तक, कोविड -19  के इलाज़ के लिए दवाएं, दस्ताने और मास्क बनाने में अग्रसर है और ये सेक्टर आने वाले समय में युवाओं के लिए कई रोज़गार के अवसर प्रदान करेगा। बरहाल जहां सम्पूर्ण विश्व के ज्यादातर सेक्टर को आर्थिक नुक्सान का सामना करना पड़ रहा है,  वहीं जैव प्रौद्योगिकी का क्षेत्र इस विपति में उभर रहा है।  आने वाले समय में शोधकर्ताओं के लिए भी इस क्षेत्र में कई चुनौतियों के साथ अवसर भी होंगे जैसे रैपिड स्क्रीनिंग, डायग्नोस्टिक टेस्ट और वैक्सीन विकसित करने के लिए शोध की आवश्यकता। संभवतः बड़े पैमाने पर कोविड -19 की स्क्रीनिंग के लिए स्क्रीनिंग प्रशिक्षण इंस्टिट्यूट की भी आवश्यक होगी ताकि युवाओं को प्रशिक्षित किया जा सके। जैव प्रौद्योगिकी इस महामारी के बारे में जागरूकता फैलाने तथा चिकित्सीय सुविधा प्रदान करने में सहायक है। जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कैसे प्रत्यक्ष हस्तक्षेप, जैसे कि ड्रग पुन: उपयोग या आयुर्वेदिक उपायों के बारे में भी शोध के आवश्यक क्षेत्र होगा। जैसा कि कहा गया है "रोकथाम इलाज से बेहतर है",  जैव प्रौद्योगिकी ज्ञान को साझा करने और इस घातक वायरस के फैलने के तरीकों और अन्य पहलुओं के बारे में जागरूकता फैलाने में भी कारगर होगा। इस क्षेत्र में बायोटेक्नोलॉजिस्ट और माइक्रोबायोलॉजिस्ट भी डॉक्टरों की मदद कर रहे हैं इसलिए, चिकित्सा प्रौद्योगिकी के साथ साथ जैव प्रौद्योगिकी प्रभावी निदान प्रदान कर रही है। इसके अलावा, जैव प्रौद्योगिकी अपशिष्ट निपटान विधि के विकास में भी अहम् भूमिका निभा रहा है। कोविड -19 कि रोकथाम के लिए सफाई रखना बहुत आवश्यक है इसलिए निदान और उपचार के दौरान उत्पन्न अस्पताल का कचरा प्रबंधन के लिए भी जैव प्रौद्योगिकी कि भूमिका महत्वपूर्ण है। इस तरह जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में  निदान या उपचार सम्बंधित, दवा उद्योगों, वैक्सीन में अनुसंधान और उत्पादन का भविष्य सुनहरा है।

Sunday, May 10, 2020

मजदूर है, मजबूर है: कोरोना तो नहीं बेबसी का शिकार है

संपूर्ण विश्व जहां वैश्विक महामारी कोरोना से पीड़ित है, वही भारत न सिर्फ कोरोना बल्कि कई लाचारी से भी पीड़ित है | यहां कोरोना वायरस ने जिस तरह का संकट पैदा किया है वो बहुत ज्यादा घातक है | इसने प्रवासी मजदूरों के हालात गंभीर कर दिए है | कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन ने घर से हज़ारों किलोमीटर दूर फसें प्रवासी मजदूरों कि ज़िन्दगी दूभर कर दी है | दैनिक वेतन पर कार्य करने वाले मजदूरों के लिए एक-एक दिन शहर में गुज़ारना भारी पड़ रहा है इसलिए वो पैदल ही हजारों किलोमीटर का सफ़र तय कर रहे है | ज्ञात हो कि महाराष्ट्र के औरंगाबाद में मालगाड़ी से 16 मजदूरों के कटने का मंजर दिल को दहला देता है | बिखरी रोटियां, खामोश पटरियां मजदूर की मजबूरी की कहानी बयां कर रही है | लॉकडाउन के चलते ये सभी मजदूर अपने घर जाने के लिए 40 किलोमीटर चलकर आए थे | थकान ज्यादा लगी, तो पटरी पर ही सो गए थे लेकिन उन्हें क्या पता था कि उनकी ज़िन्दगी का सफर उसी रोटी के साथ खत्म हो जाएगा जिसके लिए वो घर से मीलों दूर चले गये थे |

ये वही रोटी है जिसकी तलाश में मजदूर अपने घरों से हजारों किलोमीटर दूर का सफ़र तय करते है | इसी माह की पहली तारिख को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया गया, आये दिन मजदूरों की बेबसी की कहानी बीते अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस कि अलग दास्तान को बयान कर रही है |  आये दिन हो रहे हादसों से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कोरोना ने तो नहीं लेकिन प्रवासी मजदूरों कि मजबूरी ने उनकी जान जोखिम में डाल दी है | ज्ञात हो कि इससे पहले जब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन की घोषणा की तो घर लौटने के लिए बेताब प्रवासी मजदूर पैदल कि घर कि ओर निकल पड़े और सड़क हादसे का शिकार हो गये | उत्तर प्रदेश के रहने वाले, दिल्ली में कार्यरत प्रवासी मजदूर अपने घर पहुँचने के प्रयासों के दौरान अपने जान गंवा बैठे थे | खबरों के अनुसार कम से कम 17 प्रवासी मजदूरों और उनके परिवार के सदस्यों - जिनमें पांच बच्चे भी शामिल थे, सड़क हादसे में मारे गये थे | अन्य  समाचार रिपोर्टों के अनुसार, दिल्ली में एक रेस्तरां में एक होम डिलीवरी कार्यकर्ता के रूप में कार्यरत एक 39 वर्षीय व्यक्ति की 28 मार्च को मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में जाते समय मृत्यु हो गई थी | इन मौतों के अलावा, सेव लाइफ फाउंडेशन द्वारा जारी एक रिपोर्ट से स्पष्ट होता है कि  कोरोनोवायरस लॉकडाउन के दौरान घर लौटने की कोशिश के कर रहे  42 प्रवासी श्रमिक भी सड़क हादसे के कारण मौत का शिकार हो गये  ।

इस लॉकडाउन की अवधि के दौरान भारत भर में सड़क दुर्घटनाओं में कुल 140 लोगों की मौत हो गयी | लॉकडाउन के दौडान सड़क हादसे की रिपोर्ट के अनुसार लगभग 30% मौतें पैदल चलने वाले श्रमिकों की थीं | इसके अलावा दो बिहार के मोतिहारी के रहने वाले प्रवासी मजदूर जो नेपाल में कार्यरत थे, कोरोनोवायरस महामारी के मद्देनजर लॉकडाउन के कारण साइकिल पर ही अपने घर का रुख कर लिया था | नेपाल में तीव्र मोड़ पर बातचीत के दौरान खाई में गिरने से उनकी मृत्यु हो गई थी |

बरहाल प्रवासी मजदूरों की दशा दयनीय बनी हुई है, देश में कोरोना के चलते लगाया गया लॉकडाउन का सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव प्रवासी मजदूरों कि ज़िन्दगी पर हुआ है । दरअसल जब उन्हें ये पता चला की जिन फैक्ट्रियों और काम धंधे से उनकी रोजी-रोटी का जुगाड़ होता था, वह लॉकडाउन के चलते बंद हो गयी है, तो वे घर लौटने को छटपटाने लगे | ट्रेन-बस यात्रा के सभी मार्ग बंद होने के कारण और घर में पर्याप्त राशन नहीं होने की वजह से अपने घर पहुंचने के रास्ते तलाशने लगे | दरअसल ये मजदूर जिन ठिकानों में रहते थे उसका किराया भरना नामुमकिन लगने लगा तो ये मजदूर पैदल ही अपने घरों की  ओर निकल पड़े और ये उनकी ज़िन्दगी का आखिरी सफ़र बन गया |  हालांकि सरकार आश्वाषण दे रही है पर उनका सब्र टूटने लगा तो पैदल ही घर की ओर निकल पड़े, पैरों में छाले है, सर पर बोझ है, चिलचिलाती धुप है और हजारों किलोमीटर का सफ़र तय करना है | मजदूर कोरोना से ज्यादा लाचारी का शिकार है, उनकी बेबसी कि सिसकती तस्वीर उनके दर्द को बयान कर रही है |

विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (एसटीईएम) क्षेत्रों में महिलाओं का वर्चस्व

 https://pratipakshsamvad.com/women-dominate-the-science-technology-engineering-and-mathematics-stem-areas/  (अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस)  डॉ ...